जीवन क्या है ???
चक्र है, दुष्चक्र है..
सत्य है , असत्य है...
शून्य है , संपूर्ण है..
चक्र को घुमाने वाला आघूर्ण है...
बात सत्य की चली,
मृत्यु भी वहीँ आ डटी...
बोली मैं जीवन का संपूर्ण सत्य हूँ,
मनुष्य का अंतिम कृत्य हूँ...
जीवन के सम्मुख खड़ी वह,
निश्छल, अविकल , निर्भय, दृढ-प्रतिज्ञ...
जीवन के पाँव ठिठके हुए,
वह है अभी ऋणी और कृतज्ञ....
एक क्षण है वो,
जीवन के सामने डटा हुआ...
जो बहा सदैव निर्झर सा,
आज वही रुका हुआ....
अनवरत वाणी आज मौन है,
सोचती है यह सत्य कौन है ???
फिर देखा सत्य को गौर कर,
कुछ सोचता है दो पल ठौरकर...
बोला जीवन मृत्यु से,
तूने खेल यह प्रतिक्षण खेला है...
परन्तु अभी आई नहीं,
साथ चलने की बेला है...
अंतिम संवाद तेरे संग करूँगा...
जब इस यात्रा को भंग करूँगा....
परन्तु अभी साथ नहीं जाना है,
स्वयं का मूल्य चुकाना है...
ऋण उतारकर स्वयं का,
आऊंगा तेरे द्वार...
फिर दोनों प्रिय मित्र ,
साथ चलेंगे सागर के उस पार......